गुरुवार, 11 अगस्त 2011

ब्लेकमेल या आन्दोलन

धत तेरे की ! मै कितना बेवकूफ हूँ ये मुझे आज पता चला | सच कह रहा हूँ | पिछले दिनों अखबारों में पढ़ कर ही मुझे मालूम हुआ की ब्लेकमेल क्या होता है | इससे पहले तक तो मै यही समझता था कि किसी छिछोरे युआ लड़के द्वारा 'लव-लेटर' लेकर लड़की को परेशान करना या फिर किसी पैसे वाले 'ईमानदार अमीर' से, डर दिखा कर पैसे ऐठना ही ब्लेकमेल होता है | भला हो इस सरकार का जिसने मेरी जानकारी में इजाफा किया कि प्रजातान्त्रिक देश में आन्दोलन करना भी ब्लेकमेल होता है |
सरकार से कोई बात मनवाना हो तो भूख हड़ताल या अनशन किया जाये, ये भी कोई बात हुई ? कितने ही रास्ते है उसके लिए | तोड़ फोड़ करो, वाहन दुकान जलाओ,लूटपाट करो,चक्काजाम करो,रेल पटरी पर बैठ जाओ |
लेकिन इन 'अम्योचर', गवांर, और अधकचरे आन्दोलनकारियों से यही परेशानी होती है | सरकारी पद और फौज से जब रिटायर हो जाते है तो आन्दोलन, माफ़ करना ब्लेकमेल करने लगते है | और ब्लेकमेल भी बड़े घटिया तरीके से | ब्लेकमेल करना ही है तो कोई सरकार से सीखे | मजाल है कि कोई सहयोगी मंत्री गड़बड़ करे या कोई सहयोगी दल आँखे दिखाए | न जाने कहाँ से सी.बी.आई.या इन्कमटेक्स जैसे डिपार्टमेंट सक्रीय हो जाते है | बेचारे राजनेताओ कि बात है ,कुछ न कुछ मामले तो निकल ही आते है | सब कुछ ईमानदारी से करते होते तो इतने कार्यकर्ताओं, और उससे भी बढ़कर जनता कि अपेक्षाओं पर 'खरे उतरकर' यहाँ तक पहुचते ? बस ! ऐसे ही मामले बन जाते है जी का जंजाल | मन मसोस कर चुपचाप बैठना पड़ता है और सरकार के इस ब्लेकमेल के खिलाफ कुछ बोल भी नहीं पाते | सहयोगी सरकार है कोई एक 'समर्थन' वापस ले भी ले तो दूसरा पलक पावडे बिछाए तैयार होता है देने के लिए, भले ही पहले कभी आपने उसे स्वादिष्ट खाने कि पार्टी से भगा दिया हो | कई बार तो आप न मांगे तो भी 'समर्थन' देते है . ये होता है ब्लेकमेल !
सिर्फ जंतर मंतर पर बैठने से क्या होता है | कितना परेशान होते है दुसरे नागरिक | अब वैसे ही राजनेतिक रैलीओं ओर जुलुस से कोई कम परेशानी है जो तुम भी अनशन पर बैठ जाओ ? फिर बोलने का अधिकार दिया है तो शुभ-शुभ बोलो | भारतीय संस्कृति का भी ख्याल नहीं करते | गाँधी जी के वारिस है ये भी भूल गए | बापू ने क्या कहा था ? बुरा न देखो, बुरा न सुनो, बुरा न कहो . पर कभी इतिहास पढ़ा हो तब न | और गाँधी के देश के हो तो कम से कम 'गाँधी' के खिलाफ तो मत बोलो |
तो भैय्या ब्लेकमेल करना ही हो तो माया बहन जी , जया बहन जी, लल्ला प्रसाद जी , गुस्सेल दीदी जी जैसे से सीखो. हाँ, सच कहता हूँ | कलकत्ता में बैठ कर दिल्ली का मंत्रालय चला दिया कि नहीं ?
और सिर्फ 'अन्ना' नाम होने से आप को ब्लेकमेल का अधिकार नहीं मिल जाता | एक वो अन्ना है जिनके पूरे परिवार को जेल में डाल दिया पर चूँ तक नहीं की | और आप है कि भ्रष्ट्राचार-भ्रष्ट्राचार किये जा रहे है | अनशन का दिन भी कौन सा चुना, आजादी पर्व के ठीक दूसरे दिन | और कहते है भ्रष्ट्राचार भारत छोड़ो | भूल गए हमारी संस्कृति? हम किसी को जाने को नहीं कहते, हम तो सभी आने वाले का स्वागत करते है | पासपोर्ट वीजा न भी हो तो क्या हुआ? बेचारा कितनी मुसीबतें उठा कर आया होगा, जाने का कैसे कह दे ?
और भ्रष्ट्राचार क्या ? जब बाबू , अफसर, मंत्री, संतरी या बेटा, साला, बेटी, जमाई, सभी शामिल हो तो उसे शिष्टाचार कहते है | व्याकरण पढ़ी नहीं कभी क्लास में ओर चले है सरकार को समझाने | तो भैय्या ये ब्लेकमेल का धंदा छोड़ो और कुछ शिष्टाचार सीखो. वरना तुम मजबूर करते हो सरकार को ओर आधी रात को परेशान होती है पुलिस | हाँ आखिर में सरकार को फिर से धन्यवाद कि उसने मेरा 'जनरल नॉलेज' बढाया वरना मै तो आन्दोलन को प्रजातंत्र का अधिकार ही समझता रहता |
-दिलीप लोकरे
36, सुदामानगर इंदौर 452009
मोबाईल 9425082194