रविवार, 16 मई 2010

परिवर्तन कि चाह है । मौके कि तलाश है नजरे दूर क्षतिज तक देख रही है.............. कही है कुछ ?

शनिवार, 8 मई 2010

Mothers Day


कहाँ गई वो माँ ?
चूल्हे पर सिकी रोटी कि गंध में
आँगन बुहारने पर धूल कि धुन्द में
त्योहारों पर बनी रंगोली के रंग में
पहले-पहले दिन स्कूल जाति संग में
किसी गलती पर मुझे पीट कर खुद आंसू बहाती
कहाँ गई वो माँ ?

रात को डरने पर आँचल की छाँव में
गलती करने पर डांट के भाव में
गरमी कि छुट्टी में मामा के गाँव में
छुक-छुक गाड़ी कि भीड़-भाड़ में
पीतल के लोटे से पानी पिलाती
कहाँ गई वो माँ ?

गाँव के टीले पे
मंदिर के मेले में
कागज की फिरकनी मुझे दिलाती
कोने के ठेले पे
बरफ के गोले पे
रंगों की चाशनी ज्यादा डलाती
खुद न खा कर मुझे खिलाती
कहाँ गई वो माँ ?
. दिलीप लोकरे