बुधवार, 31 मार्च 2010

अपने अधिकार

सडक किसके लिए है और जंगल किसके लिए ?
रोज की आपाधापी भरी जिंदगी में हम अकसर यह उम्मीद करते है कि हमें सारी वह सुविधाए मिले जो मिलनी चाहिए , लेकिन उन सुविधाओ कि चाह में अपने कर्त्तव्य भूल जाते हैं । हमारी सुविधा यदि दूसरे कि असुविधा होती हो तो हमें अपने कर्तव्य का बोध भी होना ही चाहिए .

मंगलवार, 30 मार्च 2010

स्नेह


मध्य प्रदेश के सुन्दर शहर मांडू में लिया है इस चित्र को ।
ग्रामीण परिवेश के स्नेह को दर्शाता यह चित्र .

गजल- अभी तो रात चल रही है


हवा जो साथ चल रही है /तो समझो बात चल रही है /
जो कल तक थी फासले से /वो थामे हाथ चल रही है /
वहां डूबें हैं कुछ मंजर /वहीं भीगे हैं कुछ सपने
इन आँखों में गज़ब सूखा /वहां बरसात चल रही है /
मुझे अपने भी मिलते हैं /तो रखता फासले दरम्यां/
किसी का अब भरोसा क्या / अभी तो घात चल रही है /
भरी दोपहर में दिखते है / यहाँ साये अँधेरे के /
कभी फुरसत में आ जाना / अभी तो रात चल रही है/
तुम्हारे घर मै पंहुचा था /की जानु इस सच्चाई को /
है सचमुच इश्क मुझसे /या खुराफ़ातचल रही है /
o दिलीप लोकरे