रविवार, 18 जुलाई 2010

समझदार बच्चा
कभी चाँद को रोटी समझने वाला बच्चा
अब समझदार हो गया है
वह जानता है रोटी, रोटी है
चाँद नहीं
वह यह भी जानता है
अच्छी तरह
की मेहनत करे बिना रोज
रात को चाँद दिख सकता है
रोटी नहीं
और शायद इसी लिए
रात को चाँद देखने के बदले
वह काम करता है
तभी पाता है
सुबह-सुबह रोटी,भरपेट
-- दिलीप लोकरे

रविवार, 4 जुलाई 2010

चिड़िया और आदमी

चिड़िया और आदमी
हाल ही में बनाये
बड़े बंगले से
माँ की ही तरह
चिड़िया को भी
बाहर निकाल दिया मैंने,
माँ
जिसने मुझे जीवन दिया
अपना दूध पिलाया
चलना सिखाया
हर मुश्किल में
साथ निभाया,
और चिड़िया
जिसने बिना थके
बिना हारे
मेहनत से
अपना नीड़
बनाना सिखाया
....क्या करू
चिड़िया नहीं
आदमी हू
मै.......!
-दिलीप लोकरे